नश्वर सारा जीव जगत है सबने ही बतलाया
ढूंढ रहा हूं खुद में खुद क़ो,
पता नहीं लग पाया है।
पूछा जिससे भी अब तक है,
उसने नहीं बताया है।
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कौन गली से आया हूं मैं,
कौन गांव है जाना।
मैं हूं कौन देश का प्राणी,
किस्सा वही पुराना।।
अनसुलझी सी एक पहेली,
समझ नहीं कुछ आया है ।
ढूंढ रहा हूं खुद में खुद को,
पता नहीं लग पाया।।
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ये दुनिया तो रैन बसेरा ,
कहते दुनिया वाले।
हर चौराहे लगे मिलेंगे,
लेकिन मकड़ी जाले।
समझ गया मैं दुनियादारी
मन को नित समझाया।
ढूंढ रहा हूं खुद में खुद को,
पता नहीं लग पाया।।
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कंकड़ पत्थर जोड़ रहा हूं,
कहकर सोना चांदी।
जो कुछ मेरा नहीं यहां पर,
हुआ उसी का आदी।।
नश्वर सारा जीव-जगत है,
सबने ही बतलाया।
ढूंढ रहा हूं खुद में खुद को,
पता नहीं लग पाया।।
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