ढूँढ रहा हूँ तुम्हें ( स्मृति गीत)
ढूँढ रहा हूँ तुम्हें ( स्मृति गीत)
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ढूँढ रहा हूँ तुम्हें हवा, निर्मल-जल की लहरों में
(1)
कभी देखता हूँ नीला-नभ, दूर – दूर तक फैला
कभी घिरा काले -सफेद, बादल से यह मटमैला
घटता-बढ़ता चाँद गगन में, कितनी बार निहारा
कितनी दूर -पास है यह धरती से सोचा तारा
ढूँढ़ रहा हूँ तुम्हें रात में, दिन की दोपहरों में
(2)
कभी देखता हूँ छोटे, बच्चे हॅंसते-मुस्काते
हरे सुकोमल पत्ते, पेड़ों की डाली पर आते
चिड़िया कोयल कौवा नभ में, कभी देखता गाते
कभी देखता हूँ नभ को, जल की बूँदे बरसाते
ढूँढ रहा हूँ तुम्हें देस-परदेस गाँव -शहरों में
(3)
नया रूप नूतन-तन लेकर, कहाँ बसे बतलाओ ?
कौन सुवासित हुआ लोक, तुम जहॉं हँसे बतलाओ ?
वस्तु जगत में नहीं सुलभ वह, जो तुम तक पहुँचाऊँ
पंख नहीं हैं उड़ूँ गगन में, सात-लोक तक जाऊँ
ढूँढ रहा हूँ तुम्हें साँस के, अंतरतम पहरों में
ढूँढ रहा हूँ तुम्हें हवा, निर्मल-जल की लहरों में
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451