ढूँढे कहाँ जा अपनी पहचान
हम ने सुना है इस दुनिया में,
है मात-पिता का ऊँचा स्थान ।
पुत्र-पुत्री नेत्र हैं इनके,काटूँ किसको,
दोनों ही इनके संतान ।
जब अपना सगा दिखे न कोई,
आँचल बचा ले तत्क्षण प्राण।
पूज्यनीय हैं, वंदनीय हैं, इस जग में,
हो इनका पूरा सम्मान ।
क्या कलयुग की छाया माया,
बदल गया इनके सोच विधान ।
सम्मानित होकर इस जग में,
कर बैठे निस्तेज अभिमान ।
बेटा-बेटी में फिर भेदभाव उपजा,
धूमिल हुआ प्रकृति का गहरा ज्ञान ।
कैसी कलुषित प्रवृत्ति इनमें जागी,
पुत्री पर दें हम क्यों ध्यान ।
सम्पत्ति हैं किसी और चमन के,
क्यों बांटूँ अपना उद्यान ।
दोष कहो क्या उस पुत्री का,
ढूँढे कहाँ जा अपनी पहचान ।
जन्मदाता ही हुए न अपने,
तो क्या होगा कोई अंजान ??—क्रमशः
उमा झा