ढुंढ लिया
ग़म में भी ख़ुशी ढुंढ लिया,
मैं ने हर ज़ख्म का मलहम ढुंढ लिया।।
दर्द में भी राहत ढुंढ लिया,
मैं ने प्रेम की व्याख्या ढुंढ लिया।।
क्रोध में भी आशीर्वाद ढुंढ लिया
मैं ने हर मंजिल का राह ढुंढ लिया।।
व्यगं में भी विश्वास ढुंढ लिया,
मैं ने जड़ में चेतन ढुंढ लिया।।
अपने में कमी ढुंढ लिया,
मैं ने सफलता का कुंजी ढुंढ लिया।।
संत में परमहंस ढुंढ लिया,
मैं ने साधु का अर्थ ढुंढ लिया।।
आदि में अन्त ढुंढ लिया,
मैं ने परमात्मा को जग में ढुंढ लिया।।
कष्ट में भी सुख ढुंढ लिया,
मैं ने हर पल जीना सीख लिया।।