ढह गया ख्वाहिशों का बना जब किला
ढह गया ख्वाहिशों का बना जब किला
रुक सका आँसुओं का न फिर सिलसिला
सर पटकती रही तट पे आकर लहर
हाथ जो थाम ले हमसफ़र ना मिला
जब लकीरें बनी ही नहीं हाथ में
फिर किसी से बताओ करें क्या गिला
हो गईं आज आबाद तनहाइयाँ
यादों’ का जब जुड़ा साथ में काफ़िला
दर्द आँसू तड़प और बेचैनियाँ
बस मुहब्बत का हमको मिला ये सिला
आ गये वो पुराने ही किरदार में
जैसे ही तख्त-ओ-ताज उनका हिला
‘अर्चना’ ज़िन्दगी में खिज़ा छा गई
जब भी उम्मीद का कोई भी गुल खिला
डॉ अर्चना गुप्ता
17-11-2021