ढलती हुई शाम
अक्सर
ढलती हुई शाम
तेरी याद का
पैगाम लिए
दबे पाँव
मेरे दिल में
चली आती है
जिससे मिल कर
फिर मेरी आंख भी
भर आती हैं।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
अक्सर
ढलती हुई शाम
तेरी याद का
पैगाम लिए
दबे पाँव
मेरे दिल में
चली आती है
जिससे मिल कर
फिर मेरी आंख भी
भर आती हैं।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद