ढलती जाती ज़िन्दगी
कुंडलिया छंद…
ढलती जाती ज़िन्दगी, धीरे- धीरे नित्य।
तत्परता से हम करें, चलो सुनहरे कृत्य।।
चलो सुनहरे कृत्य, साथ वह ही जायेगा।
कर्मों के अनुसार, हाथ में फल आयेगा।।
वशीभूत इंसान, उम्मीदें मन में पलती।
‘राही’ माया मोह, ज़िन्दगी रहती ढलती।। 616
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)