ढलता सूरज वेख के यारी तोड़ जांदे
ढलता सूरज वेख के यारी तोड़ जांदे
लौकी क्यों अद् विचकारे छड़ जाते ,
जे यकीन न होंदा रब दी रहमत दा
पत्थर किवें पानी दे उत्ते तर जान्दे ।
जिगरा होवे जे गुरु गोविंद सिंह बरगा
हेक नल सवा सवा लख भी लड़ जादें
रख भरोसा उस रहबर दी रहमत दा
खोटे सिक्के भी इत्थे चल जान्दें ।।
✍️कवि दीपक सरल