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21 Jul 2017 · 1 min read

ढलता रहता हूँ

ढलता रहता हूँ

***

हर रोज़, दिन सा, ढलता रहता हूँ !
बनके दिया सा, जलता रहता हूँ !!

कोई चिंगारी कहे, कोई चिराग !
यूँ नजरो में, बदलता रहता हूँ !!

सब के सब बन बैठे है सारथि मेरे !
इशारो पे पग बांधे चलता रहता हूँ !!

सूरज था, झंझटी बादलो में घिर गया
कभी छुपता, कभी निकलता रहता हूँ !!

किनारे आँखों छाँव लेकर बैठा “धर्म” !
खुद अपनी तपिश में जलता रहता हूँ !!

!
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!
डी के निवातिया

1 Like · 570 Views
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