ढलता रहता हूँ
ढलता रहता हूँ
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हर रोज़, दिन सा, ढलता रहता हूँ !
बनके दिया सा, जलता रहता हूँ !!
कोई चिंगारी कहे, कोई चिराग !
यूँ नजरो में, बदलता रहता हूँ !!
सब के सब बन बैठे है सारथि मेरे !
इशारो पे पग बांधे चलता रहता हूँ !!
सूरज था, झंझटी बादलो में घिर गया
कभी छुपता, कभी निकलता रहता हूँ !!
किनारे आँखों छाँव लेकर बैठा “धर्म” !
खुद अपनी तपिश में जलता रहता हूँ !!
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डी के निवातिया