ड्रेस-कोड
ड्रेस-कोड
: दिलीप कुमार पाठक
मेरा दो ड्रेस है. एक भगवा, दूसरा लेवर ड्रेस. ड्यूटी दोनों में बजता है, जिससे अपना दैनिक जीवन-यापन चलता है. जिससे बहुतों को जो मेरे परिचित बनते हैं, या तो मुझे पहचानने में असमंजस में पड़ जाते हैं या उन्हें तकलीफ होती है. ऐसा ही कुछ आज घटा, जब हमारे एक नये वयोवृद्ध साथी जो नये-नये बने हैं. केरल के हैं, कुट्टी कृष्णन जी. टाटा स्टील से रिटायर हैं. वर्तमान में एक निजी कंपनी में मैनेजर हैं. तड़के सुबह उठते हैं. नित्यकर्म से निबटकर झाड़ू, कचड़ा उठाने के लिए एक बोड़ा जिसमें एक रॉड का हुक लगा रखे हैं लेकर अपने दरवाजे के सामने की गली की १५० मीटर तक सफाई करते हैं. इक्कट्ठे किये गये कचड़े को फिर आग के हवाले करते हैं. उसके बाद प्रात: ५:०० से ६:३० तक संघ शाखा में अपनी उपस्थिति देते हैं. ७:३० से १०:०० तक गरीब बच्चों को कॉपी-कलम देकर नि:शुल्क पढ़ाते हैं. उसके बाद दिवा ११:०० से फैक्ट्री जाते हैं. सप्ताह में तीन दिन मंगल, बुध एवं शनिवार को स्वामी भूमानन्द की संस्था में संध्या ५:१५ से ६:१५ तक बौद्धिक विकास हेतु जाते हैं. स्वामी भूमानन्द का आश्रम त्रिचुर, केरल में है. यहाँ उनके आश्रम की शाखा है. कुट्टी कृष्णन जी ने वहाँ के बारे में मुझे बताया, “हम तो वहाँ जाते हैं और शास्त्रों-उपनिषदों का अध्ययन-अध्यापन करते-कराते हैं.”
“तब तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी चलूँगा. वहाँ कोई……….”
“नहीं-नहीं, आप ही जैसों की तो वहाँ जरूरत है. पहूँचिए जरूर पहूँचिए.”
कल बुधवार था, पहुँच गया. संध्या को ठीक पाँच मिनट विलम्ब से ५:२० में.
क्या आश्रम ? क्या बतायें ? बड़ी मनमोहक आकृत्ति दी गयी है, मन को शान्ति देनेवाली. मगर दरवाजे पर दरवान के साथ भौंकता हुआ एक जर्मन शेफर्ड नस्ल का कुत्ता.
“कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ?”
मतलब कि यह प्रतिबंधित क्षेत्र है.
“भाई, यहाँ एक कक्षा चलती है शास्त्र और उपनिषदों की”
“क्या ? ”
” अन्दर कुट्टी कृष्णन जी हैं ?”
“अन्दर दो साहब और एक मैम साहब गया है, सब बूढ़ा-बूढ़ा.”
“हाँ तो उन्हीं के साथ बैठना है.”
कुत्ता भी भौंके जा रहा था. गार्ड कुत्ते का सिक्कड़ पकड़ उसे अपनी तरफ खींचा.
“चलिए अन्दर जाइए.”
चल भाई. मैं भी जल्दी-जल्दी गेट के अन्दर प्रवेश ले लिया. फिर राह दिखाने गॉर्ड मेरी तरफ दौड़कर आया.
“हाँ-हाँ, अपना चप्पल वहाँ नहीं, चप्पल स्टैंड में खोलिए. आइए इधर.”
फिर पाँव धोने की जगह पाँव धोया और कुछ सीढ़ियाँ चढ़ अध्ययन कक्ष में पहुँचा. वहाँ कुट्टी साहब एक बुजुर्ग महिला के साथ आदि शंकराचार्य विरचित विवेक चूड़ामणि पढ़ने में लगे थे.
“आइए, आइए. अभी उपस्थिति कुछ कम है. ”
अध्ययन कक्ष एकदम अध्ययन कक्ष लग रहा था. मुझे लग रहा था, बस इसी तरह की जगह की तो मुझे तलाश थी. इस आग उगलते शहर में इस तरह का परिवेश और इस तरह से अचानक मिलना भाग्य की ही तो बात है.
मगर कुट्टी सर थोड़ा असहज हो रहे थे.
मगर वहाँ,” हाँ तो ५१३वाँ श्लोक पहले पाँच बार पढ़ेंगे हम. उसके बाद इसका सन्धि करेंगे. तब अन्वय, तब अर्थ लगाएँगे और अन्त में फिर दो बार पढ़ेंगे. तो पढ़ा जाय ”
इतने में वहाँ की प्रबन्धिका आ गयीं. कुट्टी साहब,” ये दिलीप पाठक जी हैं. औस्ट्रोलॉजर हैं, पूजा पाठ भी कराते हैं. अध्ययन में अभिरूचि है, अत: आ गये हैं.”
वो भी बैठ गयीं. हम चार हो गये.
“अव्यक्तादिस्थूलपर्यन्तमेतत्
विश्वम् यत्र आभास मात्रम् प्रतीतम्।
व्योमप्रख्यम् सूक्ष्माद्यन्त हीनं
ब्रह्मद्वैतं यत्देवाहमस्मि।।
अव्यक्त से लेकर स्थूल भूत पर्यन्त यह समस्त विश्व जिसमें आभास मात्र प्रतीत होता है तथा जो आकाश के समान सूक्ष्म और आदि-अन्त से रहित अद्वैत ब्रह्म है, वही मैं हूँ .”
पूरे पाँच श्लोकों का अध्ययन हमने किया. फिर सवा छे हो गया. अध्ययन को विराम दिया गया. इसी दौरान यह भी पता चला कि यहाँ प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना का कार्यक्रम चलता है. जिसमें विष्णु सहस्रनाम एवं गीता का एक अध्याय सामूहिक पढ़ा जाता है. आधे घंटे का ध्यान भी लगाया जाता है.
कुट्टी जी समय के बहुत पाबंद हैं. वो तो चले गये, मुझे यह कहकर,” आपको रुकने का मन हो तो रुकें. मैं तो चलूँगा, कुछ और जिम्मेवारियाँ हैं.”
अगले दिन सुबह जब उनसे मुलाकात हुई, “पाठक जी, आपको देख सभी असहज हो रहे थे. ये भगवा ताना-बाना सन्यासियों का है. आपके लिए वहाँ यह अलाउड नहीं है.”
“क्या ?”
” हाँ, वहाँ पैंट-शर्ट में आइए.” बोल रहे हैं और पसीने-पसीने हो रहे हैं.
“मगर यह तो मेरा करीब पन्द्रह वर्षों से स्वाभाविक परिधान है. इसमें परेशानी हो रही है, यह तो अज़ीब बात है.”
“सबका अपना-अपना ड्रेस कोड होता है. यह आपका ड्रेस कोड नहीं हो सकता.”
” आप अजीब कहते हैं, इसी परिधान से मेरा रोजी-रोटी चलता है. मेरा ड्रेसकोड यही है.”
“वहाँ ये आपके साथ नहीं चलेगा. वहाँ आपको पैंट-शर्ट में आना पड़ेगा. नहीं तो वहाँ आप ही को सब सन्त समझ लेगा. आप सन्त थोड़े हैं.”
” देखिए मेरे पास इसके अतिरिक्त बस एक लेबर ड्रेस है. जिसको कभी-कभी पहनता हूँ जब लेबरई करता हूँ. उसको पहन के आऊँगा तो शायद…. इन्ट्री ही न मिले.”
“पैंट-शर्ट नहीं है तो पाजामा-कुर्ते में आइए.सामान्य जन का यही पहनावा है.”
“ये आपकी सोंच है. पाजामा-कुर्ता और पैंट-शर्ट के इतिहास से शायद आप अवगत नहीं हैं. मुझे भगवा धारण करने में कोई परेशानी नहीं है. उसको पहनने पर मेरे अन्दर एक अलग तरह की बड़ी अच्छी उर्जा बनती है.”
“चलिए भाई ठीक है, अब आपको कौन समझाए ? स्वामी जी की चपत लगेगी, तब समझ बनेगी.”
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टिपण्णियाँ:
केदार पाण्डेय: जय हो परिधान की महिमा।
हेमलता अरुण: Wah bahut sundar wakya hai. Dress code apka sahi hai dilip ji kuch galat nahi hai. Swami Bhumanand ji ke karya kram me mai karib do teen baar gai thi. Dress kode ka koi problem nahi hai.
कमलेश पुण्यार्क गुरुजी: मैं इसी डर से किसी आश्रम में नहीं जाता हूँ। सवाल उठता है- जाऊँ तो कहाँ? गृहस्थ ब्राह्मणशरीर से बड़ा कोई आश्रम हो सकता है क्या?
राजेन्द्र पाठक: वाह। बहुत खूब। नव ब्राह्मणवाद की चुनौतियाँ और समय के साथ वाजिब बदलाव झेलते दिलीप जी की ड्रेस-कथा जिनको पसंद आई उनको सलाम जिनको इसमें हंसी और व्यंग्य लगा उनको भी साधुवाद।
ब्राह्मण ,बनियावादी नही हो सकता और आज का दौर शुद्ध ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद बर्दास्त नही कर सकता। तब स्वाभिमान और स्वावलंबन के लिए श्रम आवश्यक है बुद्धि विवेचन और श्रम साधन के ड्रेस कोड और शारीरिक मुद्राएं अलग होंगी ही।
लगे रहिये बिना किसी की परवाह के।
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा: Virodhabhaas jeevan ka satya hai, isme chinta ki koi baat nahin. BHAGWA- JAGWA SE DOOR LE JAATA HAI, ATAH LAUKIK PARAMPARA MEIN RAHNA PADTA HAI. FIR SABKA APNA- APNA SARJAN – MARDAN HAI.
शिशिर कुमार भक्ता-भक्ता: जय श्री राधे-कृष्ण !
कहना तो आपका भी यथार्थ है और कुट्टी साहब का भी कहना यथार्थ है दोनो अपने-अपने जगह में सही हैं!
आप सही इस तरह से हैं कि हमारा भारतिय परिधान पैण्ट सर्ट नही है , और कुट्टी साहब का इस तरह की आपका जो परिधान भगवा रंग का है सो सही देखा जाय तो वाकइ मे यह योगी यती सन्यासी का परिधान है हम गृहस्थों का नही हम गृहस्थो के लिए स्वक्ष सफेद धोती कुर्ता ही है जिससे दोनो धर्म निभ जाता है हम विदेशी वस्त्र पैण्ट सर्ट पहनने से भी बच गए और सन्यासी वेष भी नही लगा !! अगर कोइ अनुचित शब्द हो तो उसके लिए क्षमा कर देंगे !!
मंगलम् शुभ प्रभात !!
राम कृष्ण मिश्र: भगवा धारी बाबाजी” कैसे तारिफ करू आप की आज मेरे पास शब्द की कमी महशुश हो रही हैं! आप का भगवा प्रेम का रंग कभी मद्धिम न पडे!
सत्यदेव मिश्र: अत्यंत सटीक।
राम कृष्ण मिश्र: ड्रेस का महत्व हर जगह है!