डोली व अर्थी में वार्तालाप
डोली व अर्थी में वार्तालाप
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एक डोली चली,एक अर्थी चली,
दोनो में इस तरह कुछ बाते चली।
अर्थी बोली डोली से,
तू पिया के घर चली,
मै प्रभु के घर चली।
तू डोली में बैठ चली,
मै चार कंधो पर चली।
फर्क इतना है दोनो में सखि,
तू अपने जहां में चली
मै अपने जहां से चली।”
एक डोली चली, एक अर्थी चली,
दोनो में इस तरह कुछ बाते चली।
देखकर तुझे साजन खुश होगा,
देखकर मुझे साजन दुखी होगा।
तेरे घर में खूब खुशी होगी,
मेरे घर में गम लहर होगी।
फर्क इतना है दोनो में सखि,
तू अपने घर से विदा होकर चली,
मै लोगो से अलविदा होकर चली।।
एक डोली चली एक अर्थी चली।
दोनो में इस तरह कुछ बाते चली।।
तू जवान होकर चली,
मैं बूढ़ी होकर चली।
तू नाता जोड़ने चली,
मै नाता तोड कर चली।
फर्क इतना है दोनो में सखि,
तू नरक लोक को चली,
मै स्वर्ग लोक को चली।
एक डोली चली,एक अर्थी चली,
दोनो में इस तरह कुछ बाते चली।।
डोली बोली अर्थी से,
मांग तेरी भरी,मांग मेरी भरी,
चूड़ी तेरी हरी,चूड़ी मेरी हरी।
सज कर मै भी चली थी
सज कर तू भी चली थी
मै साजन के साथ चली,
तू गैरो के साथ थी चली।
फर्क इतना है दोनो में सखि,
मै सबसे मिलकर चली,
तू सबको छोड़कर चली।
एक डोली चली एक अर्थी चली।
दोनो में इस तरह कुछ बाते चली।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम