डोली में
अब मुश्किल होगा, लौटना तेरे महफ़िल में
मुझे आवाज़ ना देना, बहुत दिन रह गए हैं हम तेरे बस्ती में।।
अब कोई अपना ना रहा तेरे इस शहर में
हमें लौटना होगा, कहती हैं ये वादियां उसके शरगोसी में ।
इश्क के कई बस्तियां डूब गई हैं आंखों के पानी में
बहुत खेल देखें हैं इश्क की, यारों हमने अपनी जवानी में।।
पत्ते भी रो पड़ते बिछड़कर अपने डालीं से
कुछ भी एक जगह कहां ठहरता हैं बहते पानी में।।
गज़ब-गज़ब के लोग मिलते हैं जिंदगानी में
कोई हमें खुशी तो कोई हमें ग़म देते हैं दो पल की दिवानगी में।।
उठती हैं गिरती हैं प्रेम की लहरें मन के समुद्र में
हमें मालूम हैं रोई होगी खूब जब बैंठी होगी डोली में।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान -बिहार