“डोली बेटी की”
जब द्वारे से बेटी की डोली चली,
छोड़ चली बाबुल का घर,प्यारी कली।
माँ ने ममता से लोरी सुनाई थी गोद में,
बाहों में झुलाया पिता ने बेटी को मोह में।
मेरे बाग की तू नाजुक डाली ,
घर आज बाबुल का छोड़ के चली।
माथे पे खुशी का ताज रहे,
होठों पे हँसी की धूप खिले।
अनमोल आंसुओं को बहाना नही,
आँसुओं से दामन भिगोना नही।
बेटी कह रही पिता से पापा ना करो पराई,
बेबस था पिता कर रहा विदाई।
मां से बेटी कहती तू कहती राजदुलारी थी,
तेरी खुशियों में मैं हूं फिर करती क्यू विदाई।
बेटी की बातें सुन मां कहती है,
भरा रहे खुशियों से जीवन यही दुआयें देती हूँ।
मां को लगा गोद से कोई,सब कुछ जैसे छीन चला,
फूल जैसे मेरी फुलवारी का सब कोई बीन चला।
बेटी की डोली जब उठती है,
पिता फूट फ़ूट कर रोया है।
जन्म हुआ था लाडली का जैसे वो रोइ थी,
आज विदाई के अवसर पर माँ भी ऐसी रोइ थी।
तिनका तिनका जोड़ कर फूल सी बेटी को पाले थे,
आज विदा कर बेटी को,दूजे आँगन में सौपे थे।
भोर की किरणें फिर मुंडेर पर आएंगी,
विदा हो रही बिटिया की आवाज सुबह ना आएगी।
बेटी का कातर स्वर पिता को झकझोर दिया,
पापा आज क्या सचमुच हमको छोड़ दिया।
क्या इस आँगन के कोने में मेरा कोई स्थान नही,
अब पापा मेरे रोने का ध्यान नही।
मेरी छोटी छोटी ख्वाहिश पापा पूरी करते थे,
मैं आज तुम्हे नही पाती हूं पर एहसास तुम्हे हम करते हैं।
निःशब्द रहे वो कोई और नही पिता है,
अथाह प्रेम जिनमे भरा है,
मन सागर से भी गहरा है।
जाओ बेटी सदा खुश रहो देते हैं आशीर्वाद,
अपनी मीठी सी वाणी से सुखी रहो आबाद।
अपने जीवन भर की तपस्या से ढूढा उत्तम वर,
खुश तुम्हे रखेगा फिर भी नयन आते भर।
बेटी की डोली रोक के कहते हैं सुनो बिटिया रानी,
ससुराल को दिल से अपनाना बन के रहोगी घर की रानी।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज