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26 Dec 2021 · 1 min read

डोमिन चाची

मैं दोपहर को वहा पहुंचा था। मम्मी पापा तो चाकी काड़ी वाले दिन ही पहुंच गए थे। मेरा पेपर था तो सीधे जनेऊ वाले दिन हीं पहुंच पाया।जब पहुंचा तो जनेऊ का लगभग आधे से ज्यादा कार्यक्रम हो गया था। बरूआ जनेऊ पहन चुका था । सूप वाला काम और भिक्षा भी दी जा चुकी थी। बड़े फूफा ब्रह्मा बने थे। बरनै हो रही थी…….
सारे परजा मालिन, धोबिन, बारिन, कुम्हारिन , नाउन , बढ़ई सब एक जगह बैठे हुए थे। इन सब से अलग एक परजा डोमिन चाची सबसे अलग किनारे बैठी हुई थीं। किसी बरनै करने वाले का उन पर ध्यान ही नही जा रहा था। जब वो सारे परजो को रुपए देकर जाने लगते तो चाची कहती इधर हम भी बैठे है। वो भी तो घर की परजा थी क्या उन्हे सभी परजो के साथ बैठने का अधिकार नही है ? और यदि हां तो क्यो? क्योंकि वो शुद्र है इसीलिए।
यह सब देखकर भी मैं कुछ नही बोल पा रहा था। शायद समाज की इस संकीर्ण मानसिकता को देखकर मैं निशब्द हो गया था।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 294 Views
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