डॉ अरुण कुमार शास्त्री
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डॉ अरुण कुमार शास्त्री
कितना चाहा था दिलोजान से तुमको
और तुम ने क़दर न की उस बददिमाग की
अब जब के वो नहों इस ज़हान में मौजूद
तो रो रो के ज़ान देने चले हो साहिबे आलम।
अज़ी भूल भी जाइये जो गया सो गया
ख़ैर मानो बखैर ख़ुदा की के यादों में रह गया
सदा के लिए एक मीठी से चाह बन कर ।