“डिजिटल मित्रता” (संस्मरण)
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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“मुझे दुख है बस अपनों से जो दिल के पास रहते हैं
गुजर जाए कई सदियाँ कभी नहीं बात करते हैं !!” @परिमल
देवनाथ बाबू दुमका में ही अपना प्राइवेट स्कूल चलाते थे ! यह स्कूल पांचमी क्लास तक थी ! उनकी पत्नी इस स्कूल की प्राचार्या थीं ! बंगाली होते हुये भी देवनाथ बाबू की हिन्दी बहुत अच्छी थी ! यही एक कारण था कि उनके लेख समाचार पत्रों में छपते रहते थे ! वैसे देवनाथ बाबू मास मीडिया में स्नातक तो नहीं थे फिर भी इनकी गिनती पत्रकारों में होती थी ! अपनी हरेक बातों को बेबाक समाचारपत्रों में रखते थे ! इनकी दो छोटी -छोटी बेटियाँ थीं ! देवनाथ बाबू पैतालीस के उम्र में ही दुमका के जाने माने पत्रकार बन गए !
2002 में 30 वर्षों के सेवा उपरांत मेरी सेवानिवृति हुई ! आर्मी मेडिकल कोर ने मुझे चिकित्सा तंत्र से जोड़े रखा ! दुमका में जन्मे ,शिक्षा ग्रहण की और सेवानिवृति के उपरांत दुमका को ही अपना कर्म भूमि समझा ! चिकित्सा पेशा के अतिरिक्त मैंने भी कुछ -कुछ लिखना प्रारम्भ कर दिया ! और धीरे धीरे लिखना मेरी हॉबी बनती चली गई ! सेवानिवृति के बाद 2014 से मैंने भी कम्प्युटर सीखना प्रारम्भ कर दिया ! फेसबूक के पन्ने भी मेरे खुल गए ! हालांकि यह एक मेरी उपलब्धि ही मानी जाएगी ! जिसे मैंने सदा ही तिरस्कार किया उस यंत्र को बाद में मैंने अपना लिया !
देवनाथ बाबू मेरे फेसबूक मित्र बन गए ! एक शहर और सटे हुये मुहल्लों में रहने के बावजूद भी कभी उनका दीदार ना हुआ ! बस उनकी तस्वीर को मैं फेसबूक के पन्नों पर देख लेता था ! दुमका एक छोटा सा शहर है ! लोगों को जानना और पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं है ! उनके लेख और विचारों का अवलोकन तो कर लिया करता था ! उनकी लेखनी का कायल में हो चुका था ! देवनाथ बाबू भी मेरे लेखनी और कविताओं को पढ़ते थे और आनंद लेते थे ! परस्पर विचारों का मिलना ही तो फेसबूक मित्रता को मजबूत बनाता है !
मुझे इच्छा होने लगी देवनाथ बाबू से एक बार मिलें ! साक्षात दर्शन आनंदमयी होता है ! वर्षों बीत गए आज तक देवनाथ बाबू से मुलाक़ात हो ना सकी ! डिजिटल मित्र तो अधिकांशतः दूर के ही होते हैं ! उनलोगों के दर्शन तो फेसबूक पन्नों पर ही संभव है पर देवनाथ बाबू और मैं तो इसी शहर के सटे हुये मुहल्ले में रहता हूँ ! मुलाक़ात की प्रवल इच्छा बलवती होती गई ! बाज़ार में मेरे बहुत सारे बचपन के दोस्त इधर -उधर बिखर गए पर इस शहर के लोग मुझे अधिकतर पहचानते हैं ! बात चली तो मैंने अपने दोस्तों को पूछा ,
–” भाई ! देवनाथ बाबू को तुमलोग जानते हो जो रसिकपुर में अपना प्राइवेट स्कूल चलाते हैं ?”
“ अच्छा ! जो कभी- कभी समाचारपत्रों में लिखते भी हैं ? ….वे दुमका मैन पोस्ट ऑफिस के बगल में अर्जुन की चाय दुकान पर रोज सुबह आते हैं !”—रंजीत ने मुझे आश्वस्त किया !
वैसे प्रत्येक दिन सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए दुमका समाहरणालय मैं जाता हूँ ! पोस्ट ऑफिस होकर ही मुझे गुजरना पड़ता है ! अर्जुन की चाय दुकान पर एक छोटी प्याला (कुल्हड़)में मैं भी चाय पीता हूँ ! आज मैंने निश्चय कर लिया कि देवनाथ बाबू से जरूर मिलूँगा ! अर्जुन से चाय की प्याला पकड़ते हुये धीमे स्वर में पूछा ,–
“अर्जुन ! देवनाथ बाबू इनमें से कौन हैं ?”
“वो देखिये ! न्यूज़ पेपर पढ़ रहे हैं !”-अर्जुन ने कहा !
अरे ये हैं देवनाथ बाबू ? इनको तो मैं प्रत्येक दिन देखता हूँ ! फेसबूक में चेहरा कुछ और है और वास्तव में कुछ और ! पर गौर से देखने के बाद मैं आश्वस्त हो गया ! वे सिगरेट पी रहे थे ! स्प्लेंडर बाइक पर एक टांग लटकाए न्यूज़ पेपर पढ़े जा रहे थे ! मैं उनके पास पहुँचकर पूछा ,—“देवनाथ बाबू ! क्या आपने मुझे पहचाना ?”
“ओह ! डॉक्टर साहिब … क्यों नहीं ?”
देवनाथ बाबू इतनी बातें कहने के बाद फिर अपने न्यूज़ पेपर और सिगरेट में मशगूल हो गए !
मुझे आश्चर्य और क्षोभ हुआ कि ‘ऐसे लोग’ भी लोगों के फेसबूक से जुडते हैं !
देवनाथ बाबू के उम्र के बराबर मेरे भी दो जुड़वाँ बेटे हैं ! अभिवादन की बातें तो भूल जाएँ पर देवनाथ बाबू ने तो शिष्टाचार की भंगिमा को ही भुला दिया !………………
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
18.11.2024