डायरी में शायरी…1
कुछ पाने की कोशिश में मैं, बहुत अधिक खोता गया।
ऊपर से हँसता गया ख़ूब, अंदर से रोता गया।।//1
किसको दर्द सुनाऊँ अपना, किसको समझूँ मैं यार।
जिसको अपना कहा कभी भी, उसने खोला छल द्वार।।//2
बीज प्रेम के हृदय पिरोये, ज़ुबाँ करे है सत्कार।
स्नेह लुटाते साँस सुधाकर, कहूँ उसे मैं संस्कार।।//3
द्वेष कपट बद चोर निग़ाहें, भला किसी का कब करें।
विष उगलते सर्प से ‘प्रीतम’, मस्त मग्न दादुर डरें।।//4
औक़ात मनुज की रेत सरिस, आँधी से हो गुमनाम।
उसकी ताक़त छुईमुई-सी, जो भ्रम का हुआ गुलाम।।//5
आर. एस. ‘प्रीतम’