डायन
सुबह-सुबह नित्यक्रिया से निवृत्त होकर मैं बालकनी में टहल रहा था। चाय की तलब आ रही थी सो सुधा को आवाज लगाकर बेटी को आज का अखबार लाने नीचे भेज दिया। ये पेपर वाला भी नीचे दरवाजे पर ही पेपर फेंक कर चला जाता है।
थोड़ी देर बाद सात साल की बेटी अखबार के मुख पृष्ठ पर छपे समाचार को पढ़ते हुये आयी। आते ही उसने मेरे सम्मुख एक साथ कई सारे प्रश्न दाग दिये – ” पापा ये डायन क्या होती है……? देखिये न आज के अखबार में ये क्या……? और क्यों लोगों ने उसे….? ”
उसके इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर अखबार में छपे समाचार के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी। उसके हाथ से अखबार लेकर मैंने मुखपृष्ठ पर नजरें गड़ा दी। लिखा था – ” कल शाम शहर के गाँधी चौक पर डायन के शक में उन्मादी भीड़ ने एक बृद्ध महिला को बंधक बनाये रखा। किसी ने उसके बाल काट दिये, तो किसी ने उसके वस्त्र फाड़ दिये। किसी ने उसके मुँह में कालिख भी पोत दी। फिर निर्वस्त्र अवस्था में उसे भीड़ भरे बाजार में घुमाया गया। इसी बीच बड़ी निर्ममता से उसकी पिटाई भी की गयी। हर तरह से अपमानित और प्रताड़ित करने के बाद उसे मरणासन्न अवस्था में वहीं गाँधी चौक पर लावारिस हालत में फेंक दिया गया। भीड़ में से कोई भी व्यक्ति उस लाचार की मदद को आगे नहीं आया।
पुलिस के पहुँचने से पूर्व ही उस बेबस लाचार गरीब ने तड़प-तड़प कर उसी गाँधी चौक पर दम तोड़ दिया। गाँधी बाबा की प्रतिमा भी उस लाचार की हालत पर आँसू बहाती रह गयी। ”
पूरी खबर पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा – मानो शरीर शक्तिविहीन-सा हो गया हो। सुधा कब आकर चाय रखकर चली गयी ज्ञात ही नहीं हो सका। बेटी अब भी मुझे झकझोरते हुये अपना प्रश्न दुहरा रही थी – ” बताओ न पापा – डायन क्या होती है…..? ” – मैं निरुत्तर एकटक छत को घूरे जा रहा था……