Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Oct 2020 · 2 min read

” डाक युग “…..हमारा भी एक समय था

” डाक युग ” वाकई डाक युग एक युग था और हम सबने वो युग बहुत प्यार , अपनेपन और बेसब्री से से उसको जीया है । वो एहसास जो पत्र लिख कर लाल रंग के डब्बे ( पत्र पेटी / लेटर बॉक्स ) में उसको डालते वक्त होता था गज़ब का होता था । सबके घरों में गेट या दिवार के अंदर की तरफ एक लेटर बॉक्स ज़रूर होता था शाम के वक्त उसको खोल कर सारी आई डाक इकठ्ठा कर एक एक कर सबके नाम देखना ये रोज़ का बेहद रोमांचक कार्य होता था । और अगर किसी को किसी खा़स ( प्रियतम , पति – पत्नी , माता – पिता , नौकरी संबंधी , लड़की के पसंद की स्वीकृति आदि ) डाक का इंतज़ार हो उस वक्त उस व्यक्ति का व्यवहार देखने लायक होता था जब तक डाक न आ जाये उसका बेचैनी से टहलना बार – बार लेटर बॉक्स में झांक कर आना तब तक जारी रहता था । कुछ खास डाक तो अपने दोस्तों के पते पर भी मंगवाई जाती थी , उन खास पत्रों को सहेज कर रखना उनको मौका मिलते ही बार – बार पढ़ना किसी के आने पर झट उसको छुपाना वाह ! क्या मदहोशी वाले पल होते थे । पत्र लिखने के लिए ” हैंडराइटिंग ” सुधारी जाती अच्छे शब्दों को दिमाग में बैठाया जाता था इन दोनों के सही – सही होने के चक्कर में ना जाने कितने पन्नों की कुर्बानी दी जाती थी ।
उस ” डाक युग ” में जीने का सबसे बड़ा सहारा होते थे पत्र – चिठ्ठीयाँ ऐसा लगता था हम पत्र पढ़ नही रहे बल्कि वो व्यक्ति उस पत्र में से बोल रहा है उसका चेहरा भी हम उस पत्र में देख लेते थे । एक ऐसी उड़ान होती थी जिसको हम पत्रों के माध्यम से बिना पंखों के पूरी कर लेते थे । तरह – तरह के लिफाफे , लेटर पैड , अंतरदेशी , पोस्ट कार्ड और तार अरे ! तार से याद आया ये एक ऐसा शब्द था जिसको सुनते ही सबसे पहले तो बुरे समाचार की ही सोच दिमाग में आती ऐसा लगता जैसे ” तार ” ना होकर कोई बम हो ।
” डाक युग ” का खतम होना एक परंपरा का खतम होना है ये वो परंपरा थी जो प्रागैतिहासिक काल से निरंतर चली आ रही थी और अपने अलग – अलग माध्यमों से विकसित और परिष्कृत होती रही , कक्षा में भी पत्र लेखन सिखाया जाता था और है बस अंतर इतना है की उस वक्त हम इस लेखन से वाकिफ थे और ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग था लेकिन आज के बच्चों के लिए ये बस एक अध्याय है । आज भी संभाले हुये पत्रों का जो एक विशेष स्थान है वो कोई भी आधुनिक उपकरण नही ले सकता जो एहसास बिना चेहरा देखे मन की आँखों से देख लेते थे वो एहसास आज कोई महसूस ही नही कर सकता इन्हीं सारी वजहों की वजह से मुझे वो ” डाक युग ” पसंद था । अब बस एक याद रह गई है एक आवाज साइकिल की घंटी की और डाकिये की…डाकिया डाक लाया…. डाकिया डाक…..।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/10/2020 )

Language: Hindi
Tag: लेख
409 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Mamta Singh Devaa
View all
You may also like:
अगर जल रही है उस तरफ
अगर जल रही है उस तरफ
gurudeenverma198
जिंदगी से निकल जाने वाले
जिंदगी से निकल जाने वाले
हिमांशु Kulshrestha
इतना तो करम है कि मुझे याद नहीं है
इतना तो करम है कि मुझे याद नहीं है
Shweta Soni
अधूरा ही सही
अधूरा ही सही
Dr. Rajeev Jain
आया यह मृदु - गीत कहाँ से!
आया यह मृदु - गीत कहाँ से!
Anil Mishra Prahari
*श्रीराम*
*श्रीराम*
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
रामचरितमानस और गीता गाएंगे
रामचरितमानस और गीता गाएंगे
राधेश्याम "रागी"
ये बात भी सच है
ये बात भी सच है
Atul "Krishn"
2945.*पूर्णिका*
2945.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*मेरी गुड़िया सबसे प्यारी*
*मेरी गुड़िया सबसे प्यारी*
Dushyant Kumar
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पूर्वार्थ
दोस्तों !
दोस्तों !
Raju Gajbhiye
हमारे पास आना चाहते हो।
हमारे पास आना चाहते हो।
सत्य कुमार प्रेमी
अविरल होती बारिशें,
अविरल होती बारिशें,
sushil sarna
हर पल ये जिंदगी भी कोई खास नहीं होती ।
हर पल ये जिंदगी भी कोई खास नहीं होती ।
Phool gufran
जुदाई  की घड़ी लंबी  कटेंगे रात -दिन कैसे
जुदाई की घड़ी लंबी कटेंगे रात -दिन कैसे
Dr Archana Gupta
कलयुगी संसार
कलयुगी संसार
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
((((((  (धूप ठंढी मे मुझे बहुत पसंद है))))))))
(((((( (धूप ठंढी मे मुझे बहुत पसंद है))))))))
Rituraj shivem verma
लोग कहते हैं कि
लोग कहते हैं कि
VINOD CHAUHAN
भीगीं पलकें
भीगीं पलकें
Santosh kumar Miri
माँ का घर (नवगीत) मातृदिवस पर विशेष
माँ का घर (नवगीत) मातृदिवस पर विशेष
ईश्वर दयाल गोस्वामी
दाम रिश्तों के
दाम रिश्तों के
Dr fauzia Naseem shad
अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस
अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस
डॉ.सीमा अग्रवाल
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Kya ajeeb baat thi
Kya ajeeb baat thi
shabina. Naaz
" बीता समय कहां से लाऊं "
Chunnu Lal Gupta
मंत्र चंद्रहासोज्जलकारा, शार्दुल वरवाहना ।कात्यायनी शुंभदघां
मंत्र चंद्रहासोज्जलकारा, शार्दुल वरवाहना ।कात्यायनी शुंभदघां
Harminder Kaur
"बस्तर की जीवन रेखा"
Dr. Kishan tandon kranti
*मरण सुनिश्चित सच है सबका, कैसा शोक मनाना (गीत)*
*मरण सुनिश्चित सच है सबका, कैसा शोक मनाना (गीत)*
Ravi Prakash
🙅आज की बात🙅
🙅आज की बात🙅
*प्रणय*
Loading...