डाँटे बहुत जमीर
आँखें दोनों मूँदकर, किया अगर विश्वास !
होगा तुमको शर्तिया,.कष्ट भरा अहसास !!
बुरे दिनों में एक यह,मिली मुझे है सीख !
सच वैसा होता नहीं,रहा जिस तरह दीख !
कथनी करनी एक हो, तभी मिले सम्मान !
सोलह आने सत्य यह,बात समझ नादान !!
खुद्दारी कोसे मुझे, …डाँटे बहुत जमीर !
खींचों अब ईमान की,शर्मा आप लकीर !!
नही जगाना भूलकर,कभी किसी की आस !
देने की ताकत नही,..अगर आपके पास !!
रमेश शर्मा.