डर
क्या कहा सड़कें लंबी चौड़ी और बड़ी हैं
क्या बोलते हो साहब
हमने हौसलों से ही नंगे पांव इन्हें नाप दिया है
~ सिद्धार्थ
डराओ मुझे कि डरने को ही तो मैं बैठा हुं
कभी जात में कभी नस्ल में कभी रंग रूप में ऎठा हूं
खरीदो मुझे कि बिकने को ही तो बैठा हुं
कभी रोटी, कभी कपड़ा कभी मकान के लिए घिसने को बैठा हूं
~ सिद्धार्थ