डर
शीर्षक – डर GSAA
*********
डर तो हमारे मन की सोच हैं।
हम सब के साथ डर रहता हैं।
हां सच डर समझे और सोचते हैं।
आज हम अपने जीवन की सोचते हैं।
डर और हम जिंदगी की सोच रहती हैं।
प्रेम मोहब्बत और इश्क में भी डर होता हैं।
सच तो मन और विचारों के साथ रहता हैं।
हमारे मन में डर की वजह तो हम होते हैं।
बस समय और समाज के साथ-साथ रहते हैं।
न सोचो कुछ तेरा मेरा रिश्ता शब्दों में कहते हैं।
बस डर न मन भावों में हम तुम संग रहते हैं।
डर ही तो हमारी जिंदगी में सच रहता हैं।
आओ मिलकर हम डर भगा कर जीते हैं।
मन भावों में हम खुद को मजबूत बनाते हैं।
********************************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र in