पहले प्रेम में चिट्ठी पत्री होती थी
वह आदत अब मैंने छोड़ दी है
*धरती पर सब हों सुखी, सारे जन धनवान (कुंडलिया)*
जिन्दगी पहलू नहीं पहेली है।
इस ज़िंदगी ने तो सदा हमको सताया है
भक्ति गीत (तुम ही मेरे पिता हो)
"यायावरी" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
बद्रीनाथ के पुजारी क्यों बनाते हैं स्त्री का वेश
आदमी का मानसिक तनाव इग्नोर किया जाता हैं और उसको ज्यादा तवज
नैनों की मधुरशाला में खो गया मैं,
दीवाना मौसम हुआ,ख्वाब हुए गुलजार ।
रंग -भेद ना चाहिए ,विश्व शांति लाइए ,सम्मान सबका कीजिए,