डर होना जरूरी है
एक धनाद सेठ के घर मदन नाम का नौकर था उनका काम यह था कि उस घर में एक बच्चा था उस बच्चे की देखरेख करना और उसे खेलाना था पर वह बच्चा बहुत ही बदमाश था। वह हमेशा रोता रहता था वह शांत रहता नहीं था। उस घर के सारे सदस्य कहीं ना कहीं काम करते थे तो वे जब अपने काम पर चले जाते थे तो वह बच्चा रोता रहता था। मदन के लिए यह बहुत बड़ी समस्या थी।
एक दिन की बात है कि उस धनाद सेठ के घर के सारे सदस्य अपने – अपने काम पर चले गए और मदन के जिम्मे वह बचा रह गया, उस बच्चा की देखरेख करना था और उसको खेलाना था। बच्चा की रोज की आदत यही था कि वह शांत नहीं रहता था।
उस दिन मदन के मन में एक विचार आया। कि क्यों ना इस बच्चा को इतना डरवा दे की यह हमको देखते ही चुप हो जाए और मदन ने ऐसा ही किया। उन्होंने उस बच्चे को इतना पीटा की वह चिल्लाना बंद कर दिया। जब रोता था तब उसके गाल में थप्पड़ पड़ते थे। इस तरीका से बच्चा एकदम सहम गया, डर गया। जब भी बच्चा मदन को देखता था तो वह एकदम चुपचाप हो जाता था।
इस तरीका से जब धनाद सेठ के घर का सदस्य सभी काम पर से घर वापस आए और बच्चे को शांत देखें तो उन्हें खुशी हुआ। कि चलो बच्चा शांत रह रहा है। अब हम अपना काम आराम से कर सकते हैं और कहीं भी जा सकते हैं लेकिन बच्चा इसलिए नहीं रोता था कि वह जानता था कि जब भी रोऊंगा तो थप्पड़ पड़ेगा, इस डर से वह एकदम चुप चाप रहता था, कभी रोता नहीं था।
अगर कभी मदन के न रहने पर भी बच्चा रोता था तो मदन को देखते ही एकदम चुप चाप हो जाता था यानी उसके अंदर एक ऐसा डर बैठ गया था कि वह बच्चा करे तो क्या करें? इसीलिए मदन को देखते ही चुप हो जाता था। इसलिए कहां जाता है कि इंसान के अंदर डर भी होना जरूरी है। थप्पड़ खाने का ही डर था जिससे बच्चा हमेशा शांत रहता था कभी नहीं रोता नहीं था।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳