डर लगता है।
किसे कहे हम अपना ,कोई अपना नहीं है।
इसलिए अब डर लगता है।
कैसे निकले घर से, अब बाहर जहर फैला है।
इसलिए अब डर लगता है।
आस्तीन में हैं कई साँप पाले,न जाने कब डस ले।
इसलिए अब डर लगता है।
कौन सा रिश्ता अपना है, हर रिश्ते में जहर घुला हैं।
इसलिए अब डर लगता है।
जिस पर भी विश्वास करो, वहीं करता विश्वासघात है।
इसलिए अब डर लगता है।
रंगे सियार आये हैं राजनीति में, कब ये रंग बदल लें।
इसलिए अब डर लगता है।
खुलेआम घूम रहे हैंअपराधी, कब अपराध हो जाय।
इसलिए अब डर लगता है।
कुछ करना चाहते हैं दुनिया मे, लेकिन फेल न हो जाय
इस लिए अब डर लगता है।
दुनिया क्या कहेगी मुझे, दुनिया वाले कुछ कह न दे।
इस लिए अब डर लगता है।
खूब सपने देखता हूँ मैं, लेकिन सपने टूट न जाय कही।
इस लिए अब डर लगता है।
जिंदगी पल पल इम्तिहान लेती है । फैल न हो जाय ।
इस लिए अब डर लगता है।
डर हमारी जिंदगी में समाया हुआ है। बचपन से ही।
इस लिए अब डर लगता है।
©® रवि शंकर साह
बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड
पिन कोड -814113