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13 Feb 2019 · 1 min read

डर में

डर में

जब हम अपने,
लक्ष्य से,
भटक जाते हैं।
हमारी जिंदगी,
बारूद के ढे़र की तरह,
हो जाती है।
हर पल डर में ही,
बीतने लगती है जिंदगी।
न जाने कब,
यह सुलग जाएं,
और हम,
ढे़र हो जाएं।

सरदानन्द राजली © 94 163 19 388

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 239 Views
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