डर में
डर में
जब हम अपने,
लक्ष्य से,
भटक जाते हैं।
हमारी जिंदगी,
बारूद के ढे़र की तरह,
हो जाती है।
हर पल डर में ही,
बीतने लगती है जिंदगी।
न जाने कब,
यह सुलग जाएं,
और हम,
ढे़र हो जाएं।
सरदानन्द राजली © 94 163 19 388
डर में
जब हम अपने,
लक्ष्य से,
भटक जाते हैं।
हमारी जिंदगी,
बारूद के ढे़र की तरह,
हो जाती है।
हर पल डर में ही,
बीतने लगती है जिंदगी।
न जाने कब,
यह सुलग जाएं,
और हम,
ढे़र हो जाएं।
सरदानन्द राजली © 94 163 19 388