डर में जीना
जब से यह आया कोरोना,
जकड़ लिया है कोना – कोना,
सबको घर में कैद करा कर,
मचा दिया है रोना-धोना।
नर्स और डॉक्टर को,
अंगुली पर है नाच नचाया,
सारा दिन यह फर्ज निभाते,
इनको भी है खतरे में जीना।
परिवार है घर की खुशहाली,
सबके मन में डर का रहना,
छीन लिया जिस परिवार को,
घर है उनका सूना – सूना।
नए साल से उम्मीद है सबकी,
यह लेकर जाएगा कोरोना,
खुशियों के अब दीप जलेंगे,
नहीं होगा अब रोना – धोना।
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
सरगम भट्ट
धवरिया संतकबीरनगर खलीलाबाद उत्तर प्रदेश