✍️डर काहे का..!✍️
✍️डर काहे का..!✍️
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सैया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का..!
जो जुबाँ में है,वो बक जाओ,डर काहे का..!
सवालो पर बवाल,जवाब पर चुप्पी साधे है।
सिर्फ गूँगा है वो,उसे कटघरे से,डर काहे का..!
मंदिर मस्ज़िद तोड़कर आस्था को चूर कर दो।
लोकतंत्र है,जो चाहे वो कर लो,डर काहे का..!
नीति के आड़,शतरंज है ये धर्म की राजनीती।
प्यादे कुर्बान है वज़ीर के लिये तो,डर काहे का..!
आपके दादा परदादा पिता की ये जागीर है
दोनों हाथों से लुटा दो खज़ाना,डर काहे का..!
यहाँ शर्मसार है नैतिकता,आहत है संवेदना
देश का मान सम्मान बिक जाये,डर काहे का..!
नफरत का जहर बोने वाले हाथ में कलम दो।
इंसानियत की बाते वो भी लिखे,डर काहे का..!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
07/06/2022