डर – कहानी
जीवन अग्रवाल जी का एक ही पुत्र था प्रणय | बचपन से ही वह संकोची प्रवृत्ति का था | उसे जो भी काम दिया जाता उसे वह या तो पूरा नहीं कर पाता या फिर कोई न कोई गलती कर देता था | इसका यह परिणाम होता कि वह घर में सबकी डांट का शिकार होता | इन घुड़कियों का ये असर हुआ कि प्रणय को जब भी कोई काम दिया जाता वह मना करने की कोशिश करता किन्तु बड़ों के सामने उसकी एक न चलती और फिर वही गलती और ढेर सारी घुड़कियाँ | प्रणय के माता – पिता प्रणय को लेकर हमेशा चिंचित रहते थे | प्रणय बचपन से ही खुद पर विश्वास करने में खुद को अक्षम पाता था | अग्रवाल जी ने अपनी ओर से काफी कोशिश की किन्तु वे प्रणय की इस कमी को दूर नहीं कर सके |
अब प्रणय दसवीं कक्षा में पहुँच गया था | उसकी खुद पर विश्वास न करने की वजह से वह आज तक किसी भी कक्षा में अव्वल नहीं आया | इसके अलावा भी वह घर के कामों में भी खुद को संयमित नहीं रख पाता था और कुछ न कुछ गलती कर बैठता था | प्रणय की इस समस्या को लेकर घर के सभी लोग चिंचित रहते थे | प्रणय से जब भी बात की जाती तो वह कहता कि उसे जब भी कोई काम दिया जाता तो वह डर जाता और इसी कारण उससे कोई न कोई गलती हो जाती |
प्रणय के दसवीं के परीक्षा परिणाम को लेकर भी उसके माता – पिता बहुत ही ज्यादा चिंचित थे | स्कूल में एक नए टीचर का आगमन हुआ | नाम था संजय सर | सभी बच्चे संजय सर से बहुत ज्यादा प्रभावित थे | उनके पढ़ाने का तरीका और बच्चों के साथ घुल – मिलकर रहने के उनके व्यवहार से बच्चों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ | किन्तु प्रणय अभी भी वहीँ पर अपने आपको पा रहा था जहां वह कई वर्षों से था | प्रणय के व्यवहार को संजय सर ने नोट किया और उन्हें लगा कि शायद मैं प्रणय की मदद कर सकता हूँ |
अगले दिन संजय सर ने प्रणय के पिताजी को फोन लगा दिया | उनसे बात हुई और उन्होंने उनसे घर पर मिलने का समय ले लिया | शाम को वे प्रणय के घर जा पहुंचे | घर का दरवाजा प्रणय ने ही खोला | उसने सर को देखा तो घबरा गया और जल्दी से घर के भीतर चला गया | प्रणय के पिताजी ने संजय सर का स्वागत किया और बचपन से लेकर आज तक की सारी बातें प्रणय के बारे में संजय सर को बता दीं | संजय सर ने प्रणय को बुलाया और कहा कि क्या वह अपना आत्मविश्वास वापस प्राप्त करना चाहता है | प्रणय ने हां में सर हिलाया | संजय सर प्रणय की इस बात से खुश हुए | साथ ही संजय सर ने कहा कि जो भी काम या प्रोजेक्ट आपको दिया जाएगा उसमे गलती होने पर भी तुम्हें कोई नहीं डांटेगा | इसलिए तुम अपनी ओर से पूरी कोशिश करना | संजय ने हां कह दी | वह खुश भी हो गया कि गलती होने पर उसे कोई झिड़की नहीं देगा |
अब थी बारी संजय सर की | कि वे किस तरह से प्रणय का आत्विश्वास जगाएं | अगले दिन संजय से ने प्रणय को कुछ ट्रिक पर आधारित खेल खेलने को दिए | इन खेलों में प्रणय को बहुत ज्यादा मजा आया और साथ ही इन खेलों पर उसकी पकड़ मजबूत हो गयी | इन खेलों में प्रणय ने पूरे – पूरे अंक हासिल किये | इस गतिविधि में करीब एक सप्ताह का समय लगा | इसके बाद संजय सर ने उसे ऐसे प्रोजेक्ट दिए जिसमे प्रणय को खुद अपनी क्षमता का प्रयोग कर प्रोजेक्ट को पूरा करना था | इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए संजय सर ने प्रणय को पहले ही कह दिया था कि किसी प्रकार की मदद की जरूरत हो तो मुझे बता देना | प्रणय के ने हां में सिर हिला दिया | खेल गतिविधियों में पूरे अंक हासिल करने के बाद प्रणय का आत्मविश्वास बढ़ गया था | इसलिए उसे लगा कि इस बार भी मुझे सर को बताना होगा कि मैं इस प्रोजेक्ट को भी अपने दम पर पूरा कर सकता हूँ | और यही हुआ भी | इस प्रोजेक्ट में भी प्रणय ने अपनी क्षमता से भी बेहतर प्रदर्शन किया | संजय सर को लगने लगा कि प्रणय अब सही दिशा में अग्रसर हो रहा है | प्रणय के माता – पिता को भी प्रणय में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगे |
अंत में संजय सर ने प्रणय को वे प्रोजेक्ट दिए जिनमे उसकी रूचि कम थी | फिर भी प्रणय के आत्मविश्वास में कमी नहीं दिखाई दी | उसने पूरे उत्साह के साथ प्रोजेक्ट को पूरा किया और जहाँ उसे सर की जरूरत महसूस हुई उसने सर से राय ली और प्रोजेक्ट को पूरा कर दिखाया | अब बारी थी परीक्षा की तैयारी की | उसके लिए भी संजय सर ने अपनी योजना बनायी और उस पर अमल किया | धीरे – धीरे प्रणय ने खुद को सभी क्षेत्रों में परिपक्व किया और अपने स्कूल में कक्षा दसवीं में टॉप किया |
प्रणय के लगातार किये गए प्रयासों ने उसके भीतर आत्मविश्वास का संचार किया | प्रणय ने प्रिय शिक्षक के चरणों में गिरकर उनका अभिवादन और धन्यवाद किया | प्रणय के घर में सभी लोग प्रणय की इस उपलब्धि पर खुश भी थे और आश्चर्यचकित भी | उन्होंने संजय सर को उनके सफल प्रयासों के लिए कोटि – कोटि धन्यवाद दिया | और भविष्य में भी प्रणय को प्रेरित करते रहने का आग्रह किया |