डरता हुआ अँधेरा ?
अँधेरे के गुरुर से नीला आसमान अपने आंसू बहाने लगा ,
“सच की एक रौशनी” से अँधेरा फिर क्यों घबराने लगा ?
फूलों को इस तरह भूख- प्यास से लड़ते नहीं देखा आज से पहले,
फूलों-कलियों की आबरू को तार-२ होते नहीं देखा आज से पहले ,
लाचार- आँखों में सपने को इस तरह टूटते नहीं देखा आज से पहले ,
कलियों को काँटों से अपनी अस्मत बचाते नहीं देखा आज से पहले I
अँधेरे के गुरुर से नीला आसमान अपने आंसू बहाने लगा ,
“सच की एक रौशनी” से अँधेरा फिर क्यों घबराने लगा ?
सोच ले तू इस जमीं में आया किसलिए ? जहाँ छोड़ने से पहले,
जो तूने कमाया उसे याद कर ले पलभर , जहाँ छोड़ने से पहले,
अपने “मालिक” की तरफ जरा निहार ले, जहाँ छोड़ने से पहले,
बेबस-तड़पते फूलों की एक गुहार सुन ले, जहाँ छोड़ने से पहले I
अँधेरे के गुरुर से नीला आसमान अपने आंसू बहाने लगा ,
“सच की एक रौशनी” से अँधेरा फिर क्यों घबराने लगा ?
रात का यह अँधेरा भी एक दिन इस जमीं से चला जायेगा,
सच की रौशनी में वो झूठ-फरेब के जंगल में समा जायेगा,
फूलों और कलियों को खुशहाली का रास्ता मिल जायेगा ,
“राज” काँटों के सौदागरों का बाज़ार क्या फिर सज पायेगा ?
अँधेरे के गुरुर से नीला आसमान अपने आंसू बहाने लगा ,
“सच की एक रौशनी” से अँधेरा फिर क्यों घबराने लगा ?
******************************************************
देशराज “राज”
कानपुर