डगर-डगर नफ़रत
फूँक देगी सभी ये घर नफ़रत
दूर दिल से न की अगर नफ़रत
मजहबी ज़ह्र है फ़ज़ाओं में
ढो रहा आज हर बशर नफ़रत
भाषणों से परोस दी तुमने
दूर से आ रही नज़र नफ़रत
एक-दूजे से डर रहे हैं सब
*छल रही है डगर-डगर नफ़रत
दीप उल्फ़त के अब जला भी लें
डालतीहै बुरा असर नफ़रत*
*भाग कर जाएँ भी कहाँ अब हम
हर तरफ़ है इधर-उधर नफ़रत
देखकर इसको नाक-मुँह बनते
सच में होती बुरी ख़बर नफ़रत
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
19/10/2022