ठोडे का खेल
कई बरसों बाद देखा गांव का मेला
मुख्य आकर्षण था जिसका ठोडे का खेल
होता है पहाड़ों में ये खेल अनोखा
तीर कमान और नृत्य से होता है ठोडे का खेल
देखकर लगा, है जज़्बा लोगों में
परंपरा निभाने का आज भी वैसा
मिल रहे सभी अपनों से
है समां खुशियों का आज भी वैसा
हमारी सांस्कृतिक धरोहर का
जो यहां प्रदर्शन हो रहा है
देखकर नृत्य देव परंपरा का
मेरा मन अभिभूत हो रहा है
है मेले में ठोडा खेल वीरों का
बरसों से रही जो परंपरा हमारी
है दर्द और जश्न दोनों इसमें
जो है दास्तान ज़िंदगी की हमारी
चोट खाकर भी शिकन नहीं
नृत्य कर अपने प्रहार की तैयारी करते हैं
शाठी पाशी के वंशजों का खेल है ये
सफलता मिलने पर आहलाद करते है
आते है जब भी मैदान में
लोक नृत्य की छटा बिखेरते हैं
लहराकर फूलों से सजे हथियार
सौहार्द्र की सुगंध फैलाते है
पहनी है सलवार थोड़ी मोटी लेकिन
तीर का प्रहार फिर भी दर्द देता है
सह लेते हैं ये वीर उसे, हंसते हंसते
संग उसके उनका नृत्य मंत्रमुग्ध कर देता है
देते है अपने प्रतिद्वंदी को ताने
उनमें भी प्यार छुपा होता है
सहकर तीर का प्रहार उसके
हाथ उसके कंधे पर ही होता है
कोई एक जीतता नहीं है इसमें
जीत मिलकर सबकी होती है
है इन वीरों की खेल भावना ही
जो इस परंपरा को आगे बढ़ाती है