ठोकर खाई है, पर गिरा नहीं हूं……
ठोकर खाई है, पर गिरा नहीं हूं……
लड़खड़ाया जरूर हूं मगर गिरा नहीं हूं,
यह सोचा ना था , के तू हाथ भी ना बढ़ाएगा…
इससे तूने, दोस्ती पर भी एतबार ना करना सिखाया
तू समझ बैठा, मैं संभलूंगा नहीं, यह तेरी भूल थी,
तू भूल गया , अक्सर गिर कर समझने वाले दो
कदम आगे जाया करते हैं…..
जिंदगी की दौड़ में, अब तू मुझे दो कदम आगे ही पाएगा….
अपने अजीज दोस्त की बात को याद रखेगा ….
उस दिन,
ठोकर खाई थी पर गिरा नहीं था….
ठोकर खाई थी पर गिरा नहीं था….
उमेंद्र कुमार