ठोकरें बहुत खाई हमने यहाँ
ठोकरें बहुत खाई हमने यहाँ
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जब से हुए प्रिय हमसे जुदा
मेरा सहारा बना यहाँ खुदा
यार याराना निभा ना सके
छोड़ गए बता मेरी ही खता
दामन अधर में हैं छोड़ गए
माना जिन्हें था बराबर खुदा
बेहद यकीं था जिन पर हमें
नौ दो ग्यारह हुए देकर दगा
राहें बनाई थी जिनके लिए
रोकी हैं राहें उन्ही ने यहाँ
हमने निभाई सदा वफाएं
उन्होंने हमें दी जफाएं सदा
तुफान की तरह वो गुजर गए
किसके सहारे बसर अब यहाँ
सुखविंद्र का उठ गया है यकीं
ठोकरें बहुत खाई हमने यहाँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)