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10 Apr 2020 · 1 min read

ठेकेदार मजहब के

कभी आओ तो दिखलाऊँ तुम्हें बीमार मजहब के।
कि जिनका कुछ नहीं मजहब वो पैरोकार मजहब के।
हमारा मुल्क मजहब है तुम्हारा इश्क है मजहब,
सियासत जिनका मजहब है वो ठेकेदार मजहब के।।

जहाँ फसलें हैं नफरत की वहीं बाजार मजहब के।
कटारें, फरसे, बंदूकें यही औजार मजहब के।
गए वो दिन जो केवल प्यार था आधार मजहब का,
कि अब आतंक के आका हैं बरखुर्दार मजहब के।।

संजय नारायण

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 260 Views
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