ठेकेदार मजहब के
कभी आओ तो दिखलाऊँ तुम्हें बीमार मजहब के।
कि जिनका कुछ नहीं मजहब वो पैरोकार मजहब के।
हमारा मुल्क मजहब है तुम्हारा इश्क है मजहब,
सियासत जिनका मजहब है वो ठेकेदार मजहब के।।
जहाँ फसलें हैं नफरत की वहीं बाजार मजहब के।
कटारें, फरसे, बंदूकें यही औजार मजहब के।
गए वो दिन जो केवल प्यार था आधार मजहब का,
कि अब आतंक के आका हैं बरखुर्दार मजहब के।।
संजय नारायण