ठीक है क्या?
रोज यह मिलना मिलाना, ठीक है क्या।
बेवजह आँसू बहाना, ठीक है क्या।
साँस जबतक चल रही खुलकर जिओ जी,
मौत से बचना बचाना, ठीक है क्या।
मतलबी दुनिया फरेबी लोग हैं जी,
हर किसी से दिल लगाना, ठीक है क्या।
अश्क नैनों में दिया है यार जिसने,
फिर उसे अपना बनाना, ठीक है क्या।
उम्र की सीमा नहीं है, इश्क में जब,
भाग्य फिर से आजमाना, ठीक है क्या।
लाख दुश्मन हैं मगर इक दोस्त भी है,
यार के गलियों में जाना, ठीक है क्या।
छोड़कर सबकुछ यहीं जाना सभी को,
बेवजह का भाव खाना, ठीक है क्या।
हर तरफ हलचल सी होती है हृदय में,
‘सूर्य’ इतना पास आना, ठीक है क्या।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464