ठीक हूँ तन्हा
जो हुआ अच्छा हुआ इंकार से
ठीक हूँ तन्हा किसी लाचार से
सीखकर मुझसे मुहब्बत देखिए
बेवफ़ाई कर गया वो यार से
फूल से ही ज़ख्म इतने खायें हैं
डर नहीं लगता मुझे अब खार से
वक्त मिल जाए अगर तो सोचना
क्या हुआ हासिल तुम्हें तकरार से
खास था जो शख्स घर आता नहीं
पूछती हैं ये हवाँ दीवार से
ज़िंदगी में वो अँधेरा कर गया
चाँद कहते थे जिसे हम प्यार से
है खबर उनको मेरी हर बात की
पढ़ लिया होगा मुझे अखबार से
दूर से भी याद ‘सागर’ आ रहा
आ रही कोई सदा उस पार से