ठीक नहीं
अपने मुख से ही अपनी इतनी बडा़ई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
है सदियों से जो पथ-प्रदर्शक,लगे उसको राह दिखाने तुम
दुनिया को जो सिखलाता है उसको ही लगे सिखाने तुम
गढ्ढों को गढ्ढा बतलाओ, कहना खाई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
जिसने अपना कर्म बनाया,शिक्षण और परीक्षा को
तुम ना थे तो जिस शिक्षक ने,संभाला था शिक्षा को
उनको यूं गाली देना और हाथापाई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
पुष्पों की चाहत के बदले में कांटे नहीं बीने जाते
कर्तव्यों का बोध करा अधिकार नहीं छीने जाते
पर्वत की भांति अटल राशि को करना राई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
आवश्यकता पर चिंतन न, चिंता काफी बड़ी हुई
खाली हाथ गुरुजी हो गए,गलत हाथ में छड़ी हुई
छीन के उनसे उन पर ही जो छड़ी घुमाई, ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
दुनिया के हाथों दिलवाते जो ताने और जलालत
एक बार तो देखो साहब और विभागों की हालत
मन में हो जब मैल भरा तब तन की सफाई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
निर्मलता मन में रखो और मन का मैल निकालो अब
वेतन-नौकरी-छुट्टी खाई जरा तरस तो खालो अब
निर्माता के ही भविष्य पर धुंध जो छाई ठीक नहीं
बहुत कड़क हो साहब जी पर इतनी कडा़ई ठीक नहीं
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली