ठिठुरन
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
?माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 18th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को समर्पित ?
विषय – ठिठुरन
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा और ये ठिठुरन
मेरे हाथों में आया जो हाथ तुम्हारा कम हुई कुछ ठिठुरन -1
सुबह उठते रजाई हटाते ही शरीर को छु गई ठिठुरन
जब पेस्ट के लिए दिया हाथ पानी में तो मत पूछो ठिठुरन -2
जब गया वो नित्य क्रम वास्ते -जिस तरह से आई उसकी आवाज़
तो समझ आई उसकी ठिठुरन -3
चारों ऒर कोहरा और धुन्ध की चादर
सर्द तीखी हवाएं समाई शरीर में तो बदन में चढ़ गई ठिठुरन -4
मुझे नाज है मेरे अन्नदाता किसान भाई तुम पर
अपना फर्ज /कर्म निभाने से ना रोक पाई तुम्हें कोई ठिठुरन -5
चाय के प्याले से निकलता धुआं
चाय खत्म होते ही फिर चढ़ गई एक नई ठिठुरन -6
अमीरों ने चलाया हीटर तो भी ना रुक पाई ठिठुरन
आम आदमी ने चौराहे पर जलाया अलाव तो गरमाई ठिठुरन -7
एक नवविवाहित जोड़े का है ख्वाब ये ठिठुरन
एक नया फूल उगाती है जनाब ये ठिठुरन -8
गरीबों ने जलाये कुछ अखबार तो भगाई ये ठिठुरन
पैसे ने छलकाए दो जाम तो भगाई ये ठिठुरन -9
कहीं सरसों का साग मक्की की रोटी और ये ठिठुरन
कहीं बेजुबान की बोटी संग रोटी और ये ठिठुरन -10
पैसे वाले के कई इंतजामात ना कोई ठिठुरन
गरीब की हालत कर गई ख़राब हाय ये ठिठुरन -11
सलाम करता हूँ मैं तुझे माँ भारती के लाल
क्यूंकि माइनस तापमान में भी तुझे हिला ना पाई ये ठिठुरन -12
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान