ठिठुरता हुए गणतंत्र का चांद
ठिठुरता हुआ गणतंत्र भी चांद पर यान भेजता है और राष्ट्रभक्ति की चर्बी आंख पर चढ़ाकर जनता लोककथा की चिड़िया की तरह अपने शासक रूपी शिकारी के जाल में फंस जाती है, न फंसने का थोथा रटंत करते हुए!
ठिठुरता हुआ गणतंत्र भी चांद पर यान भेजता है और राष्ट्रभक्ति की चर्बी आंख पर चढ़ाकर जनता लोककथा की चिड़िया की तरह अपने शासक रूपी शिकारी के जाल में फंस जाती है, न फंसने का थोथा रटंत करते हुए!