ठहरा आदमी भी एक सफ़र पे ही रवाना है
चले आओ, तुम्हें मंज़र, जहाँ का, हम दिखाते हैं।
सनम! दस्तूर, तुमको इस जहाँ का हम दिखाते हैं।
यहाँ हर दिल में खंजर है, यहाँ हर दिल में काँटा है।
यहाँ मजबूरियों में दिन को, आँखों रात काटा है।
साँसें चल रही हैं, पर यहाँ जीवन के लाले हैं।
कि हाथों में पड़ी जंजीर, मुँह पे, यार! ताले हैं।
कथनी और करनी में, फरक इतना यहाँ पर है,
जहाँ में दीख रहा कुछ और, होता कुछ यहाँ पर है।
यहाँ हर चेहरे के बाद एक चेहरा बेगाना है,
ठहरा आदमी भी एक सफ़र पे ही रवाना है।