‘ठंड’
आज ठंड कुछ ज्यादा है।
सूर्य ने भी निकाला,
अपना रथ आधा है।
जमी है विचारों पर धुंध,
अंधकार ने भी हम पर,
निशाना अपना साधा है।
चक्षु में हल्की सी तपन है,
धुंध पिघल कर बन गई,
जीवन में आई बाधा है।
अचेत से प्राण क्यों लगे,
विधि का क्या इरादा है?
मचल रही हैं उंगलियां,
कलम कहे काग़ज से,
चलने का मेरा इरादा है।
आज ठंड कुछ ज्यादा है।।