ठंड
रखो मान अन्न का
फल ये किसान की मेहनत का
रात रात जागता खेत औ खलिहान
जाहे गर्मी हो या सर्दी
यूँ नहीँ लिखा प्रेमचंद ने
पूस की रात
खेत पर ठिठूर जाते
किसान अनेक
सीमा पर बैठा है जवान
नहीं है कम हौसला उसका
जब सोते हम रजाईयों में
काटता दिन रात वो ठंडी रूवाईयों में
रात रात भर माँ सोती
गीले बिस्तर पर
बैटे को बचाती सर्दी से
टूट जाती तब आत्मा उसकी
जब उड़ाता नहीं
एक कम्बल बेटा उसको
निकलती धूप जब ठंड में
स्वर्ग सी धरती हो जाती
पशु पंछी प्राणी सब में आ जाती
जान नयी
रखो मान पर्यावरण का
हर ॠतु का
है महत्व
जीवन में रखो
सब ॠतू का सम्मान
सर्दी गर्मी
बसंत या बरसात
हैं ये बहनें चार
हर ॠतु है फलदायी
जीवन में सुख समृद्धि की
प्रदायी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल