ठंड और रजाई
ठंड और रजाई पर दोहे
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कुंडी खटकी द्वार की,कौन खोलने जाय।
ठंड है बड़ी जोर की,बाहर न जाते जाय।।
रजाई में पड़े रहो,चाहे पड़े लताड़।
करवट एक न भी बदलो,चाहे मिले दहाड़।।
आहट जब हो द्वार पर,खोलो न कभी द्वार।
पीट के टल जायेगा,आय न अगली बार।।
रजाई में गरमाई , इसे छोड़ना न यार।
सदा इसमें पड़े रहो,मिले कितनि फटकार।।
निडर वीर डरते नही,चाहे आय आफत।
पड़े रहत रजाई में,चाहे लगे झापट।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम