ठंडी भारी है
ठंडी का आगमन हुआ
कुहरा भारी है।
कांप रहा है तन सबका
आग से यारी है ।
कपड़ों से तन ठाक रहे
ठंड की तैयारी है ।
गरम चाय की चाह हो रही
ठंडी की खुमारी है ।
अमीर लुफ्त ले रहे शीत का
लेते मजेदारी है ।
कांप रहे थर थर कुहरे में
गरीबो की लाचारी है ।
शीत शयन पर कुछ पशु छिपते
ठंडी अब भारी है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र विचार