ट्विन फ्लेम्स,सोलमेट्स, कार्मिक : तंत्र की आड़ में पनपता हुआ नया धंधा (Twin Flames, Soulmates, Karmics: A new Business Flourishing under the Guise of Tantra)
सनातन भारतीय संस्कृति जानने वालों की संस्कृति है, मानने वालों की नहीं! यह संस्कृति तर्क, विचार, चिंतन, विमर्श, संदेह, जिज्ञासा, प्रश्न उठाने पर आधारित आध्यात्मिक संस्कृति है! यह कारणवादकार्यवाद को मानती है!यह किसी पाखंड और ढोंग को प्रश्रय नहीं देकर तर्कबुद्धि से निष्पक्ष निर्णय लेने को महत्व देती है! यहाँ तक कि आध्यात्मिक विषयों पर भी यह सर्वप्रथम तर्क की आंखों से देखने की समर्थक रही है!यहाँ पर तो तर्क और युक्ति की मदद से किसी परिणाम पर पहुंचने को ‘न्याय’ कहा जाता रहा है!हजारों वर्षों से इसके लिये एक अलग से ‘न्यायशास्त्र’ नामक विषय का प्रचलन रहा है! वेदों, उपनिषदों से होते हुये महाभारत,श्रीमद्भगवद्गीता, सिद्धार्थ,महावीर, चार्वाक कुमारिल, शंकराचार्य, रामानुज तक तथा आधुनिक समय में स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, कृष्णमूर्ति,ओशो और राजीव भाई दीक्षित तक तर्क और युक्ति को महत्व दिया जाता रहा है!बारहवीं सदी के पश्चात् तो ‘नव्य न्याय’ की एक ऐसी परंपरा भी शुरू हुई, जिसमें आध्यात्मिक विषयों को छोडकर केवल तर्क और युक्ति को ही महत्व दिया गया है! ‘नव्य न्याय’ की इस विचित्र परंपरा में समकालीन पाश्चात्य परंपरा में पैदा हुई सभी फिलासफिक चिंतन के बीज निहित रहे हैं!
सनातन संस्कृति में एकतरफा ईमान लाने, विश्वास लाने,प्रायश्चित करने से पाप मुक्ति को कभी भी महत्व नहीं दिया गया है! पाप कोई व्यक्ति करे तथा उन पापों से मुक्ति कोई आकाश में विराजमान गाड या शक्ति दिलवाये, सनातन संस्कृति में ऐसा कभी नहीं माना गया है! जिसने भी पापकर्म, अनैतिकता, दुष्कर्म, अन्याय आदि किये हैं, उसको अपने खुद के पुरुषार्थ से मुक्त होना होगा! कर्म और फल के बीच में कोई दलाली नहीं चलेगी! कर्म और फल के बीच में कोई गुरु, पैगम्बर, मसीहा, अवतार, फकीर, महापुरुष हस्तक्षेप नहीं कर सकता है! यदि किसी ने नैतिक/अनैतिक कोई भी कर्म किया है, तो उसका फल भी भुगतना पडेगा! इसके लिये कोई क्षमा या प्रायश्चित या छूटकारा नहीं होता है!
ध्यान रहे कि भारत में पिछली कई सदियों से बिना फल का भोग किये पाप मुक्ति की अवधारणा का प्रचलन भारतीय नहीं होकर सैमेटिक/अब्राहमिक प्रभाव है!यह यहुदी, ईसाईयत और इस्लाम से आयातित है! पिछली कई सदियों से भक्ति और कथाओं पर आधारित अनेक गुरु और कथाकार इस आयातित अवधारणा कि भारत में खूब प्रचार कर रहे हैं! यह सनातन भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शनशास्त्र और जीवनमूल्यों के बिलकुल विपरीत है! इससे मानवता का सर्वाधिक अहित हो रहा है! जब बिना फल का भोग किये ही केवल ईमान लाने या प्रायश्चित करने से पापों से मुक्ति मिल जाती हो, तो फिर कौन व्यक्ति पापकर्म नहीं करना चाहेगा? फिर पापकर्म चोरी, जारी, दुष्कर्म, बलात्कार, झूठ, कपट, अन्याय, अनैतिकता आदि करके कोई व्यक्ति क्यों फल की चिंता करेगा?बिना फलभोग किये पापों से तो मुक्ति मिल ही जानी है! धार्मिक जगत् में बेशक इस अवधारणा को धार्मिक माना जाता हो,लेकिन वास्तव में इस अवधारणा ने पाश्चात्य जगत् को उच्छृंखल, शोषक, अत्याचारी, भोगवादी और युद्ध पिपासू बना दिया है! भारत भी अब इस अवधारणा की चपेट में आ चुका है! इस सैमेटिक अब्राहमिक से प्रभावित भक्ति और कथाओं की आड़ में चलने वाले सैकड़ों संप्रदाय तथा हजारों धर्माचार्यों ने भारतीय जनमानस के आचरण और चरित्र को दुषित कर दिया है!
शिव शक्ति/यिन यांग/ट्विन फ्लेम्स/पुरुष प्रकृति के सर्वोच्च नियमानुसार जीवन व्यतीत करना समाज,देह, प्राण,मन, विचार, भाव के प्रति दर्शक,द्रष्टा, साक्षी होकर प्रबोध की अनुभूति है! यह साधना जटिल हो चुके संसार में कष्टसाध्य, पीडाकारी और बाधाओं से भरी हुई है! लोग इस दौरान गलत तत्वों के चंगुल में फंसकर अपना शोषण करवा बैठते हैं! बहुत अधिक धैर्य की जरूरत होती है!लेकिन आजकल के मनुष्य में इसी धैर्य की सर्वाधिक कमी है! सभी को तुरंत फल चाहिये! समकालीन भ्रष्ट एवं जुगाड़ी व्यवस्था में कर्म करने के बाद भी मनचाहा फल मिलना लगभग असंभव हो चुका है! ऐसे में जिनके पास कोई रिश्वत और सिफारिश नहीं है, वो लोग सफलता से दूर ही रहने को विवश होते हैं!दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापन बाजार ने युवा-वर्ग की भोग वासना को भडकाकर उसे उन्मुक्त भोगी बना दिया है! नैतिक मूल्यों को को वह तोडता जा रहा है! बस जहाँ से भी हो उसे भोग भोगने के लिये साधन चाहियें! इसके साथ साथ अधिकांश भोजन भी कामुकता को भडकाने वाला ही उपलब्ध है! फिल्मी संसार और सौशल मीडिया ने कामुकता को भडकाने में आग में घी का काम किया है!आपाधापी और भागदौड के इस दौर में किसी के पास किसी के दुख, दर्द, पीड़ा और अकेलेपन को बांटने के लिये समय नहीं है!सभी सभी के सामने सुख, संतुष्टि और तृप्ति पाने के लिये झोली फैलाये खड़े हैं!लोगों के पास दूसरों को देने के नाम पर दुख, दर्द, पीड़ा हताशा, तनाव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है! युवक और युवतियों के पास अपने प्रेम संबंधों में एक दूसरे को देने के लिये विफलता के सिवाय कुछ भी नहीं है!बेरोजगारी और कमरतोड़ महंगाई ने युवाओं को और भी अधिक चिंता, भय, हताशा, अकेलेपन और घुटन से भर दिया है!
चारों तरफ असुरक्षा से घिरे युवक- युवतियों के इसी भय का फायदा उठाने के लिये पश्चिम से आई ट्विन फ्लेम्स, सोलमेट्स, कार्मिक की एक नयी ऊलजलूल अवधारणा ने अपनी पैठ बनाने का काम किया है! क्योंकि पाश्चात्य विचारक सारे मानवीय नैतिक मूल्यों को तोडकर सदैव ही आर्थिक लाभ कमाने के अवसरों की तलाश में रहते आये हैं! उपरोक्त अवधारणा से पालित पोषित लूटखसोट की जीवनशैली ट्विन फ्लेम्स, सोलमेट्स,कार्मिक आदि का प्रचलन पिछले कुछ दशकों से धडल्ले से हो रहा है!सौशल मीडिया पर इसके लिये सैकड़ों यू ट्यूब चैनल मौजूद हैं!प्रेम संबंधों में असफल युवक और युवतियां अपने असफल प्रेम संबंधों से उपजी हताशा, असफलता, अकेलेपन, तनाव, चिंता आदि की पूर्ति इस काल्पनिक ट्विन फ्लेम्स, सोलमेट्स, कार्मिक,प्रेम अर्धांग, दिव्य अदृश्य साथी आदि की अवधारणा में तलाश करके अपने बहुमूल्य समय के साथ अपनी मानसिकता को भी खराब कर रहे हैं!मिलना कुछ भी नहीं है!बस, एक आश्वासन मिलता है कि उनके साथ कुछ अदृश्य शक्तियों का खेल -तमाशा हो रहा है!
इस भुलभूलैया में फंसे अनेक युवक और युवतियां गलत तत्वों के चंगुल में उलझकर अपना शारीरिक, आर्थिक और मानसिक शोषण करवा रहे हैं!यहाँ वहाँ से जानकारियां एकत्र करके अनेक यूट्यूबर मनघड़ंत कल्पनाओं के जाल बुनकर युवा वर्ग को दिग्भ्रमित करने में लगे हुये हैं! इस शोषक अवधारणा के मूल में सिर्फ और सिर्फ उच्छृंखल सैक्स,कामवासना,उन्मुक्त भोग वासना, असफल प्रेम संबंध, दैहिक शोषण, परस्पर धोखाधड़ी,अविश्वास, झाडफूंक आदि मौजूद हैं! मूलतः इस अवधारणा के बीज सुकरात-प्लेटो-अरस्तू के डायलाग्ज,बाईबल की कहानियाँ, कुछ पौराणिक प्रसंगों को लेकर इन सब पर लाखों वर्षा पुरातन ‘भारतीय तंत्र परंपरा’ का तडका लगा देना रहा है!इससे तंत्र परंपरा भी बदनाम हो रही है! पाश्चात्य विचारकों में सनातन भारतीय संस्कृति के किसी भी पक्ष को समझने की प्रायोगिक व्यावहारिक क्षमता नहीं है! बस,अपने सीमित अध्ययन के आधार पर मनघड़ंत, ऊलजलूल, पूर्वग्रहपूर्ण व्याख्याएँ करने बैठ जाते हैं! विलियम जोन्स, मैकाले, मैक्समूलर, मार्क्स आदि तथा इनके चेलों ने पिछली दो सदियों के दौरान यही तो किया है!
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136118