ट्रैफिक जाम
रात्रि अपने आखिरी पहर में थी। रूपा की आंखों में नींद का कहीं नामोनिशान नहीं था। दिमाग में विचारों का आवागमन बराबर लगा हुआ था । जितना वो सोने की कोशिश करती विचारों का ट्रैफिक और बढ़ जाता । सर दर्द से फटा जा रहा था । आंखें बंद किये वो बुदबुदा रही थी ” ज़िन्दगी से जैसे चले गए वैसे ही मेरे दिल से क्यों नहीं चले जाते? डिवोर्स हो गया फिर भी मै तुम्हें अपने दिल से क्यों नहीं निकाल पा रही हूँ। क्यों तुम्हारे साथ गुजारे हुए लम्हे मुझे घेर लेते हैं….परेशान करते हैं…रुलाते हैं…. क्या तुम्हारे साथ भी ऐसा होता है सुनील? ” अचानक वो उठ बैठी । बराबर के स्टूल पर रखा गिलास उठाया और पानी पिया। उसका डिवोर्स हुए अभी एक ही हफ्ता हुआ था पर सुनील को वो बिल्कुल भुला नहीं पा रही थी।छोटी मोटी बातों और गलतफहमियों ने उनके बीच दीवार खड़ी करके उन्हें अलग तो कर दिया था लेकिन दिल से वो अलग नहीं हो पाई थी । खुद से ही रूपा कहने लगी….ये विचारों का ट्रैफिक तो अब ज़िन्दगी भर चलना है। अब सिर्फ वक्त ही ये ट्रैफिक जाम कर सकता है …
20-08-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)