*ट्रस्टीशिप-उपहार है (गीत)*
ट्रस्टीशिप-उपहार है (गीत)
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गॉंधी जी ने दिया जगत को, ट्रस्टीशिप-उपहार है
(1)
समझें हम यह मिला हुआ धन सब ईश्वर की माया
नाशवान है दीख रही सुंदर बलशाली काया
चार दिवस के लिए हाथ में, सबके यह संसार है
(2)
मालिक नहीं धनिक समझें उस धन का जो है पाया
यह समाज की सिर्फ अमानत जो हाथों में आया
नहीं धनिक को कुछ विलासिता, करने का अधिकार है
(3)
ट्रस्टीशिप के पथिक राष्ट्र-श्री जमनालाल बजाज थे
भामाशाह बने आजादी के मानो सरताज थे
कर्मयोग यह है गीता का, प्रेरक एक विचार है
गॉंधी जी ने दिया जगत को, ट्रस्टीशिप-उपहार है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451